Friday 25 January 2013

ईद मीलादुन्न्बी के मौके पर मुबारकबाद



Thursday 25 October 2012

AN ARTICLE ON CONTEMPORARY POLITICS AND ROBERT VADERA


                     कुंवर फंस गए भंवर में !
                        एक प्रतिष्ठित जागीरदार अपने संस्मरण में लिखते हैं , स्वतंत्रता के पश्चात जागीरदारी व्यवस्था का उन्मूलन हो रहा था , संबंधित राज्य प्रशासन  , जागीरदारों द्वारा संघारित अधिशेष भूमि को अधिग्रहित कर रहा था | अत: उक्त परिप्रेक्ष्य में उनके परिवार द्वारा अधिशेष भूमि को सर्वोदय नेता विनोबा भावे से उत्प्रेरित हो कर भू दान आन्दोलन को समर्पित कर दी गयी थी |उक्त प्रष्ठांकन के पश्चात वह आगे लिखते हैं , कथित अधिशेष भूमि को भू दान बोर्ड के माध्यम से पात्र भूमिहीनों को वितरित करने के लिए विविध स्थानों पर कार्यक्रम आयोज्य किये जाते थे |
                         ऐसे ही एक कार्यक्रम में वह स्वयं भी उपस्थित थे , जिसमे एक कृशकाय भूमिहीन कृषक एक बंजर भूमि के लिए आयोजकों से बारम्बार आग्रह कर रहा था , जबकि उस बंजर भूमि के लिए अन्य भूमिहीन कृषक अनिच्छा व्यक्त कर रहे थे |स्वाभाविक था , उस कृशकाय भूमिहीन कृषक के द्वारा बारम्बार उस बंजर भूमि के लिए आग्रह किये जाने पर उपस्थित जन समुदाय में उसके प्रति एक स्वाभाविक जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी थी | फलत: उस से प्रश्न किया गया कि वह इस बंजर भूमि के लिए इतना व्यथित क्यों हो रहा है ?
                       प्रत्युत्तर में उस अकिंचन कृषक ने जो सत्यता प्रकट की थी , वस्तुत: वह हमारी सामाजिक व्यवस्था  में अंर्तनिहित दर्शन को अभिव्यक्त करती है | वह जागीरदार उस साधारण कृषक के मुंह से असाधारण कथन को सुन कर , उसके प्रति श्रद्धा से नतमस्तक होते हुए लिखते हैं , उस कृशकाय कृषक का प्रत्युतर था , संबंधित भूमि बंजर है अथवा नहीं है , यह प्रश्न गौण है | वस्तुत: सत्यता यह है कि इस बंजर भूमि का स्वामित्व मिल जाने के पश्चात समाज में मेरी भी प्रतिष्ठा हो जायेगी , क्योंकि मैं भूमिहीन के अभिशाप से मुक्त हो कर एक सम्मानित भू-पत हो जावूँगा |
                       नि:संदेह  , उस भूमिहीन कृषक को अपेक्षित भूमि का टुकड़ा मिल जाने के कारण उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा में अवश्य वृद्धि हुई होगी किन्तु यहाँ यह यक्ष प्रश्न उठना स्वाभाविक  है कि कांग्रेस के स्वयं भू प्रथम परिवार के कुंवर ( राजस्थान में दामाद को कुंवर का संबोधन देने के परम्परा रही है ) राबर्ट वाड्रा कौन सी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए आतुर हो रहे है , जिसके फलस्वरूप उन्होंने थार के मरुस्थल में अवस्थित बीकानेर के सन्निकट हजारों एकड़ बंजर भूमि का अधिग्रहण किया है ?
                       सत्ता के गलियारों में प्यादे भी यदा कदा हरावल में चलने लगते हैं | लगता है , कथित प्यादों ने अपने आकाओं को उस विलक्षण भू-भाग की सांस्कृतिक रिवायतों के बारे में अवगत नहीं कराया कि यहां तो ऐसे कुंवर हुए हैं , जिन्होंने 1544 ई. में गई हुई भूमि को अपने अथक प्रयास से अधिग्रहित करके पुनः अपने ज्येष्ठ भ्राता राव कल्याण मल को राज्य हित में समर्पित कर दी थी , फलतः कृतज्ञ बीकाणा  आज भी कुंवर भीम राज को ' गई भूम का बाहड़ू ' के सम्मानित दिरुद से सुशोभित करता हैं |मूलत: हमारी सामाजिक एवं पारम्परिक संरचना इसी तथ्य को प्रकट करती हैं कि हमारे अंर्तमन में आज भी सामंती मूल्य अंर्तनिहित है , जिसके वशीभूत हो कर हम येन - केन प्रकारेण कुछ भूमिं के टुकड़ो को हस्त गत करके स्वयं को भू-पत कहलाने में स्वर्गीक आनंद की अनुभूति करते हैं |
                      कहना न होगा की देश में लोकतान्त्रिक राज व्यवस्था अस्तित्व में है , फिर भी तथाकथित ' दरबार ' की अपनी एक विशिष्ट ठसक होती है , अत: प्यादे भले ही भाग्यवश हरावल में आ जायें , किन्तु कतिपय राजनैतिक विवशताएं होती है , जो आकाओं के समक्ष उनको निरीह प्राणी बनने के लिए विवश कर देती हैं |अत: उनकी विवशता को दृष्टिगत रखते हुए तथाकथित भू पतियों से ' मैंगो पीपुल ' का आग्रह है की नि:संदेह , भू-पत बनियेगा , आपका जन्म सिद्ध अधिकार है , किन्तु आपकी आखेट क्रीड़ा के लिए इस महान देश को ' बनाना रिपब्लिक ' की तोहमत से नवाजा नहीं जा सकता |
                      इसे देश का दुर्भाग्य ही कहियेगा कि कथित भू-पत लैटिन अमेरिका की भू-राजनैतिक एवं आर्थिक इतिहास से तो भिज्ञ हैं , किन्तु जिस पुरा वैभव से सुसज्जित बीकाणे के भू-भाग में कुछ भूमि के टुकड़े लेकर विजयी मुद्रा में ' मेंगो पीपुल ' , ' बनाना रिपब्लिक ' जैसे अर्थहीन शब्दावली के माध्यम से इस महान देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को हेय दृष्टि से देख रहे है , वह काश , इस तथ्य से अवगत होते कि इसी बीकाणे में तो कुंवर उसे कहते हैं , जिसने 1953 ई. में 1.42 लाख बीघा भूमि भू-दान बोर्ड के मध्यम से भूमिहीन एवं कृशकाय ' मेंगो पीपुल ' को वितरित कर दी थी ताकि यह महान देश ' बनाना  रिपब्लिक ' की तोहमत से नवाज़ा न जा सके |
                        इतिहास त्रासदिक घटनाक्रम को पुनरावृत न करने का पाठ पढ़ाता रहता है ,    तदुपरांत भी भू-पत बनना ही है तो अवश्य बनियेगा किन्तु इसकी भारी कीमत भी अदा कीजियेगा | विश्वास नहीं हो रहा है तो अतीत के बदरंग पृष्ठ पलटने की थोड़ी सी जहमत उठानी होगी , तो  यही प्रतिध्वनित होगा कि बोफोर्स की प्रेतछाया से आज तलक कांग्रेस का प्रथम परिवार मुक्त नहीं हुआ है , हालाँकि कालजयी राजन विक्रमादित्य बारम्बार यह कहते हुए पेशेमां हो गये हैं कि एक सक्षम न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत बोफोर्स से संबंधित व्यक्ति विशेष को दोषमुक्त कर दिया गया है |
                       भाग्य की विडंबना है , हठी विक्रमादित्य के अपेक्षित प्रत्युतर के उपरांत भी वैताल पेड़ से उतर कर पुन: उसकी पीठ पर अधिष्ठित हो गया है |
                                                              मो. इकबाल
                                     ( लेखक - राज. राज्य सेवा के पूर्व अधिकारी हैं )
                                                संपर्क सूत्र - 9929393661

Monday 22 October 2012

AN ARTICLE ON THE OCCASION OF NAVRATRA ABOUT KARNI MATA JI

                                                        
        सुरक्षा  का अहसास माँ की दुआओं का प्रतिफल
                     नवरात्रा के उपलक्ष्य में


किसी भी राज्य के स्थायित्व के लिए सुरक्षा की अनुभूति सर्वोपरि है | यह कहने में अतिरंजना नहीं होगी कि सुरक्षा का अहसास माँ की दुआओं का प्रतिफल है | यही वजह थी कि जब राव बीका 1465 ई. में राज्य स्थापित करने के लिए मंडोवर से जांगल प्रदेश की ओर अग्रसर हुए तो प्रथमत: माँ श्री करणी का आर्शीवाद लेने देशनोक पहुंचे थे | यह माँ श्री करणी द्वारा प्रदत आर्शीवचन का ही प्रतिदान था कि कालान्तर में राव बीका चांडासर आदि स्थानों पर अधिपत्य स्थापित करते हुए कोडमदेसर पहुंचे तो यहीं 1472 ई. में स्वयं को राजा के रूप में  प्रस्थापित किया था |
                 इतिहास साक्षी है कि 1485 ई. में राती घाटी में गणेश गढ़ की नींव रखी गयी थी , जो कालान्तर में द्वितीय राठौड़ सत्ता का प्रतीक बन गया था , इसका समस्त श्रेय राव बीका ने माँ श्री करणी को प्रदान किया था | माँ श्री करनी , जो राठौड़ो की कुल देवी मानी जाती हैं , का जन्म जोधपुर राज्य में अवस्थित सुवाप नमक गांव में 1387  ई. में हुआ था | इनके पिता का नाम मेहा था , जो चारण जाति के थे एवं माँ का नाम देवल था , जो एक धर्म परायण स्त्री के रूप में चारण समाज में प्रतिष्ठित थी| यही कारण रहा कि माँ श्री करणी की गायों के प्रति बाल्यकाल से ही असीम श्रद्धा थी |
                   किशोर वय में माँ श्री करणी का विवाह साठीका , जो बीकानेर राज्य में अवस्थित था , के केलु जी बिठू के कुंवर देपा जी बिठू के साथ हुआ था | विवाह के उपरांत भी माँ श्री करणी गो- पालन एवं ईश भक्ति में विमग्न रहती थी , फलत: ईश्वरीय अनुकम्पा से , जो दैवीय शक्तियां उनके अंतस्थ में समाहित हो गयी थी , उनके द्वारा अपने भक्तो की विपदाओं का समाधान निर्लिप्त भाव से होता था |
                 नि:संदेह , माँ श्री करणी के विराट व्यक्तित्व में भविष्य के संबंध में पूर्व अनुमान प्रकट करने की अपूर्व शक्ति थी , फलत: दूरस्थ स्थानों से व्यक्ति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए आते रहते थे | यहाँ इस तथ्य को रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि जब देशनोक में राव बीका माँ श्री करणी के समक्ष नत मस्तक हो कर आर्शीवचन ग्रहण कर रहे थे , तब उन्होंने कतिपय शब्द भविष्य के सन्दर्भ में कहें थे , जिन्हें अक्षरश: उदरित करना अपेक्षित होगा , " तुम्हारा यश जोधा से सवायां ( द्विगुणित ) होगा | अनगिनत भूपति तुम्हारे चाकर ( सेवक ) होंगे | तुम्हारे वंशज पांच सदी तक इस भूभाग के छत्र पति रहेंगे | "
                 देव वाणी के सदृश उक्त भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई क्योंकि जब बीकानेर के अंतिम महाराजा  करणी सिंह का 6 सितम्बर 1988 को देहावसान हुआ तो बीकानेर नगर को स्थापित हुए पांच सौ वर्ष हो गये थे | कहना न होगा कि बीकानेर नगर की स्थापना सितम्बर 1488 में हुई थी , अत: ठीक पांच सौ वर्ष के पश्चात्  , अर्थात 6 सितम्बर 1988 को , एक स्वर्णिम काल खंड का अवसान हो गया था |
                 कालान्तर में श्रद्धालुओं की असीम भक्ति के प्रतिफल के रूप में बीकानेर से 30 कि. मी. दूर अवस्थित देशनोक में माँ श्री करणी का भव्य मंदिर , जो धवल संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है , जिसमें सूक्ष्म नक्काशी युक्त विशाल चांदी के द्वार हैं , सम्पूर्ण वैभव के साथ विस्तारित होता गया |
               


                         मंदिर के मुख्य मंडप में श्री करणी माँ एवं उनकी बहनों की मूर्तियां हैं | मंदिर की सबसे विशिष्ट बात यह है कि हजारों पवित्र चूहें स्वछंद रूप से विचरण करते रहते हैं| इन चूहों को ' काबा ' कहा जाता हैं | कथित चूहों को पूज्य मान कर मंदिर के पूजारी व भक्त भोज्य सामग्री एवं प्रसाद खिलाते हैं , क्योंकि चारण समाज के व्यक्ति इन चूहों को अपना पूर्वज मानते हैं |
                

 

                 मंदिर में आने वाले चढ़ावे को दो भागो में बांटा जाता हैं | प्रथम चढ़ावा जो द्वार भेंट कहलाता है , वह मंदिर के पुजारी तथा अन्य सेवादारों को दिया जाता है |द्वितीय चढ़ावा कलश भेंट कहलाता है जो मंदिर के रख रखाव में काम आता है |
                 मार्कण्डेय पुराणों के अनुसार दुर्गा सप्तशती का नवरात्र में पाठ करने का प्रचलन पूर्व मध्यकालीन अनुदानों में उल्लेखित है और उक्त परम्परा हमारे समाज में आज भी विधमान है | यही वजह है कि नवरात्र में माँ श्री करणी का मेला वर्ष में दो बार आयोज्य होता है | प्रथमत: चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल की दशमी तक तथा द्वितीयत: अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से दशमी तक |
                 आज आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की नवम तिथि है | कहना न होगा की देशनोक में माँ श्री करणी के मंदिर में स्थित मुख्य मंडप के चारों ओर अनगिनत श्रद्धालु परिक्रमा कर रहे हैं |उक्त परिक्रमा से प्रतिध्वनित हो रहे पवित्र नाद के आलोक में यही भावाक्ति है कि सुरक्षा का अहसास माँ की दुआओं का प्रतिफल है , आमीन !
                                                                               



                                                                  

                                                                   मो. इकबाल
                                                           संपर्क सूत्र -9929393661

Friday 5 October 2012

आज के भागीरथ AN ARTICLE ON CONTEMPORARY POLITICAL SITUATIONS IN INDIA


आज के भागीरथ
" गंगा को तो आना ही था , भागीरथ को यश मिल गया "

                                                                                                                                     
                           वो सतयुग था , महान तपस्वी भागीरथ के मन में कोई लालसा थी , यह कहना कठिन है | लकिन आज कलयुग का दौर है , अगर आप भागीरथ न भी हो तो भी अपने आप को भागीरथ घोषित करना संभव है | सरकार विरोधी लहर चल रही है , ऐसे में हर कोई इसका श्रेय लेने को आतुर है , यहाँ तक की कल तक इसी सरकार के कुछ सहयोगी दल भी आज इसी दौड़ में शामिल हो गए है |अगर कांग्रेस की वापसी नहीं होती है तो इसके पीछे असल वजह , उसकी स्वयं की नीतियाँ , अन्ना हजारे का आन्दोलन और कैग की २ जी तथा कोयला आवंटन पर रिपोर्ट होगी , जिनमे सरकार द्वारा की गयी गहरी वितीय अनियमितायें उजागर होती हैं | अब बात करे उनकी जो अपने आप को भागीरथ घोषित करने में लगे हैं | सर्वप्रथम बात करना चाहूँगा अरविन्द केजरीवाल  की , जिन्हें अभी स्वयं का कद भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में हाथी सा विशाल दिख रहा है | वेसे भी उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन , जो कि उनके दिखाने के दांत थे , से आगे बढ़कर अपना मुहँ खोल कर राजनीतिक महत्वकांक्षाओं रूपी खाने के दांत दिखाने शुरू कर दिए हैं |दिल्ली में बिजली की बढ़ी कीमतों के विरोध में वह जनता को बिजली चोरी के लिए के लिए उकसा रहे है | वह भ्रष्टाचार का विरोध अराजकता से करना चाहते है | चूहे को भगाने के लिए बिल्ली , बिल्ली को भगाने के लिए कुता और कुते को भगाने के लिए शेर , शायद भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह उनकी नयी व्यूहरचना है | देश के एक आम आदमी की हैसियत से मैं उनसे यह पूछना चाहूँगा कि वह आखिरकार चाहते क्या है ? वह जन लोकपाल लाना चाहते है या अन्ना आन्दोलन के गरम तवे पर अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की रोटियाँ सेकने के फेर में है ?
                         ऐसे ही एक भागीरथ है बाबा रामदेव | जिन्होंने पहले दिल्ली में जंतर मंतर पर बहुत ही जोश के साथ कालेधन की वापसी के संबंध में हुंकार भरी लेकिन एक फ़िल्मी ड्रामे की तरह रातों रात वह स्त्री वेश में भागते नज़र आये | अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए , लगभग एक साल बाद अन्ना के विफल अनशन प्रयास के ठीक पश्चात् उसी जगह सरकार के विरोध में कालेधन की वापसी हेतु एक दिखावे के आन्दोलन का प्रदर्शन किया , जो आंशिक रूप से सफल भी रहा और बाबा जी ने इस प्रकार भ्रष्टाचार की लड़ाई में अपनी उपस्तिथि को मजबूती प्रदान की | लकिन यहाँ उनके भगवा प्रेम ओर भाजपा के कथित समर्थन से एक यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि जब दाग भाजपा और कांग्रेस दोनों के दामन पर हैं तो हम एक को हटा कर दूसरे को सत्ता की कुर्सी सौंप कर ऐसा कौन सा बड़ा परिवर्तन ले आएंगे ?
                         यहाँ मैं दो भद्र महिलाओं का भी जिक्र करना चाहूँगा जिन्हें महिला सशक्तीकरण का पूरक मान सकते है | एक तो किरण बेदी हैं , जिनकी साफ सुथरी छवि और अब तक कि उपलब्धियों हेतु मैं उनका तहे दिल से सम्मान करता हूँ , लेकिन उनका सिर्फ कांग्रेस का विरोध करना और भ्रष्टाचार के विरोध में अरविन्द केजरीवाल को भाजपा का विरोध करने से रोकना और आजकल दिल्ली की मुख्यमंत्री के  पद के प्रति उनके मोह की जो बातें अखबारों में आ रही हैं , मन में अनेक सवाल उत्पन्न करती हैं | दूसरी महिला है ममता बैनर्जी , जिन्होंने बंगाल में लेफ्ट की सत्ता उखाड़ फेंकी थी , उनका इस वक़्त सरकार से समर्थन वापसी एक सार्थक कदम न होकर ऐसा प्रतीत हो रहा है , जैसे डूबते जहाज़ से सबसे पहले चूहों का भागना | उन्हें कांग्रेस की नीतिया अभी जन विरोधी लगी या सरकार विरोधी जो एक वातावरण तैयार किया जा रहा है , उसमे वो भी बहती गंगा में हाथ धोने के फेर में हैं ? वेसे मैं उनसे सीधे कोई सवाल नहीं करूँगा , क्योंकि मुझे डर हैं कि कंही ममता दीदी मुझे माओवादी करार न दे दें |
                         इन्ही सब के बीच एक अन्ना जी तटस्थ लगते हैं , लकिन उनके भी कुछ कृत्य जेसे येदुरप्पा के वक़्त शायद किसी मज़बूरी वश मौन धारण करना या केवल एक पार्टी विशेष का विरोध करना तथा लोकतंत्र में तानाशाही तरीको से मांगें मनवाने की जिद्द पकड़ना आदि , उनकी छवि को  धुंधला करते हैं | अब उन्होंने अनशन और राजनीति से अलग केवल आन्दोलन का रास्ता पकड़ा है , जो अधिक सार्थक लगता है |आन्दोलन तो लोक नायक जे. पी. के द्वारा संचालित  एक जन आन्दोलन भी था , जिसने इंदिरा जी की सत्ता उखाड़ फेंकी थी , लेकिन उसके लाये परिवर्तन नेताओं की कमज़ोर इच्छाशक्ति के चलते सतही साबित हुए और उसके बाद वही ढ़ाक के तीन पात |आशा करता हूँ की अन्ना जी अब न मौन धारण करेंगे न अपने आन्दोलन को राजनीतिक मह्त्वकांक्षाओं का मंच बनने देंगे , न इसे भगवा या कोई अन्य रंग देंगे  बल्कि इसे भ्रष्टाचार के विरोध में एक क्रन्तिकारी आन्दोलन का स्वरुप देंगे जो एक पार्टी विशेष के विरुद्ध न होकर हर उस व्यक्ति के विरुद्ध होगा जो भ्रष्टाचारी हैं और जिसमें देश का  प्रत्येक वर्ग जात पात से ऊपर उठकर एक समान सहयोग देगा और भ्रष्टाचार से मुक्त , जात पात से मुक्त , एक नयी पीढ़ी का उदय होगा |
                         लकिन अभी भी संशय है कि वह शक्ति क्या है जो वास्तव में परिवर्तन ला सकती है ? वह कौन सी ताकत है जिसने गाँधी जी के आन्दोलन को सफल बनाया था या वर्तमान की बात करे तो वो कौन सी ताकत है जिसने हाल ही में कुछ देशो के बड़े बड़े तानाशाहों के सिहांसन हिला दिए ? वह ताकत है जनता और उसकी एकता | जब आने वाली सरकारों का फैसला हमारे हाथो में है तो हम हमारी किस्मत का फैसला उनके हाथो में क्यों सौंपे ? जब हम वोट देने के हथियार से सत्ता परिवर्तन कर सकते है तो उन्हें जनता के हित में फैसले लेने को मजबूर भी कर सकते हैं | बस जरुरत है कि हम धर्म ,  समाज , वर्ग और तुच्छ मानसिकता से उपर उठें और सयंम और समझदारी से वोट दे न कि किसी बहकावे या लालच में आकर | याद रखियेगा पांच साल में एक बार ही सही हमारी किस्मत का बटन हमारे हाथों में होता है |
                   जाते -जाते सरकार से कुछ कहना चाहूँगा कि व्यंग चित्र ( कार्टून ) तो बस चित्र होते है जो बच्चों के चहरे पर हंसी लाते है और बड़ो के मन में सवाल , लेकिन इन्हें राजद्रोह या राष्ट्रद्रोह कि श्रेणी में रखना प्रासंगिक नहीं होगा वह भी दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतंत्र में |


             
                                                                                           डा. इमरान खान
                                                                                 संपर्क सूत्र - 9929786743
                                                                                 imran.babar85@gmail.com

Saturday 25 August 2012

RIOTS OR WRONG


धर्म एक आस्था ना की हथियार

RIOTS OR WRONG 

                                                        
             " इल्म नहीं है मेरा इतना की तेरी आवाज़ मैं बन जाऊ, न औकात इतनी की किसी पर इल्जाम मैं लगाऊ, बस चाहता हुं इतना की मेरे शब्दों से ऐ सोते हुवे इन्सान मैं तुम्हें  जगाऊ......| "


                   धर्म एक बेहद व्यक्तिगत मामला होता है , मैं किसे आराध्य मानु, किसे मैं सज्दा करू , यह मेरे मन की बात | लकिन हकीकत ऐसी नहीं हैं, मेरे देश में धर्म व्यक्तिगत पहचान के साथ साथ सामाजिक पहचान भी रखता हैं | आप क्या करते हैं, बाद की बात है, धर्म आपकी पहचान पहले पुख्ता करेगा | धर्म तय करता है कि आपको कहाँ रहना चाहिए, आप क्या खाते है, क्या पहनते है और कई बार तो ऐसी बाते जो यहाँ लिखना मुनासिब नहीं है, सभी धर्म ही तय करता हैं | मेरे देश में सभी धर्मो का सामान रूप से विकास हुआ, सभी धर्म यहाँ फले फुले लकिन धर्म के ठेकेदारों ने धर्म को अफीम के नशे की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह पिलाया की आज वो नफरत का जहर बनकर हमारी रगों में दौड़ रहा हैं | कभी सत्ता के संघर्ष में कभी वोट की राजनीति में धर्म एक हथियार है जिससे न जाने कितने बेक़सूर अपनी जान गवा बेठे हैं | कभी धर्म के नाम पर दंगे फैला कर हजारों लोगों की लाशो पर सत्ता का महल खड़ा किया जाता है तो कभी एक राजनीतिक हस्ती के क़त्ल के इल्जाम में एक जाती विशेष के लोगो को बेरहमी से क़त्ल किया जाता हैं | हम ईद के अवसर पर मिलकर खीर का लुत्फ़ उठाते हैं, दीपावली पर साथ मिलकर पठाखें फोड़ते हैं, लोहड़ी पर मिलकर खुशियाँ मनाते हैं, लकिन न जाने वो कौन सा नशा हैं, जिसमे गाफिल एक दुसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं ? 1947 के भारत विभाजन के दंगे हो या 1984 के सिख विरोधी दंगे हो, 1992 का बाबरी मस्जिद विवाद हो या 2001 में गोधरा कांड के बाद बापू की जन्मस्थली गुजरात में हुए दंगों की बात हो, एक जख्म अभी भरता नहीं एक जख्म ओर दे जाते हो, ये कौन बरगला देता है तुम भाइयों को कि एक दुसरे के खून के प्यासे हो जाते हो ? जिसका क़त्ल हुआ उसके घरवाले उसकी याद में कहाँ सो पाते होंगे, जिसने क़त्ल किया वो भी खून से रंगे हाथ लिए, कहाँ उस भार को लिए सो पाता होगा ?


                   महात्मा गाँधी ने कहा था की एक आंख के बदले आंख फोड़ते रहे तो सारी दुनियाँ अंधी हो जाएगी | आज सोचता हुं की उनकी बात सत्य हो गयी, आंखे तो सभी के पास हैं फिर भी न जाने क्यों अंधकार सा चारो ओर हैं , मंदिर मस्जिद जो हमारी आस्था के प्रतिक थे आज हमारी लड़ाई के हथियार हैं | समय सब कुछ अपने साथ ले जायेगा, कोई मिटी में मिल जायेगा तो कोई आग की लपटों में राख़ हो जायेगा, एक दिन ऐसा भी आयेगा की इस धरती का अस्तित्व ही मिट जायेगा, तब इतिहास में अपने नाम लिखाने को तत्पर लोगो सुनलो इतिहास खुद एक इतिहास हो जायेगा | कितनी भी मुर्तिया बनवालो या भवनों के नाम अपने नाम पर करवालो, एक दिन न कोई नाम लेने वाला होगा न जाती की चिंता करने वाला | एक नश्वर संसार में अपने अस्तित्व की लड़ाई करते करते थक जायो तो किसी मासूम चहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करना शायद यह जीवन ओर अधिक सार्थक लगेगा |

                                                                                                            डा. इमरान खान 
                                                                                                              9929786743

Friday 24 August 2012

AN ARICLE BY MY FATHER ABOUT ISLAMIC VALUES


एक प्रयास इस्लाम के प्रति फैली झूठी   मिथ्याओं  को तोड़ने का


जैसा कि ज्ञातव्य है , संसद का वर्षा कालीन सत्र चल रहा है | कथित सत्र के सत्रांश में ही कतिपय माननीय सदस्यों ने शून्य काल में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से इस सत्यता की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि पड़ौसी देश पाकिस्तान में अल्पसंख्यको , विशेषकर हिन्दू समुदाय के प्रति अमानवीय घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है |
               अतः उक्त अमानवीय घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में , जो एक असहाय व्यक्ति के तथाकथित धर्मान्तरण से एवं एक अल्प आयु बालिका से संबंधित है , जिसका अपहरण करके उसका धर्मान्तरण के पश्चात बलपूर्वक अन्य धर्मावलम्बी से निकाह करा दिया गया था , फलतः ऐसे निंदनीय एवं अमानवीय कृत्यों की निंदा की जाये |
               संसद की एक निर्धारित प्रकिया होती है , फलतः स्थगन , विलम्बन आदि अवरोध उत्पन्न होना स्वाभाविक है | संभवतः उक्त प्रस्ताव भी विलम्बित हो जाये और एक अन्तराल पश्चात कथित निंदा प्रस्ताव अपनी सार्थकता ही खो दे , किन्तु इस्लाम , जिसका शाब्दिक अर्थ ही सुख , शांति एवं समृद्धि से है , उसकी गौरवन्वित कर देने वाली रिवायतें रही हैं , जो पवित्र ग्रन्थ कुरान की अलौकिक आयतों के आलोक में प्रकाश पुंज के सदृश्य है | निःसंदेह तवारीख गवाह हैं कि उक्त रिवायतें ऐसी अमानवीय एवं कुत्सित घटनाओं को स्वतः ही निंदनीय करार देती हैं |
               उक्त धर्मान्तरण एवं बलात विवाह की घटनाओं को प्रेस के समक्ष प्रदर्शित करने वाले स्वयंभू आयोजक भले ही दर्प एवं अहंकार से आह्लदित हो रहे होंगे किन्तु सत्यता यह है कि वह मुस्लिम नहीं अपितु मुनाफिक ( पथभ्रष्ट ) हैं , क्योंकि सच्चे अर्थों में मुस्लिम वह है , जो इस्लाम के प्रति समपर्ण का भाव रखता हो , पवित्र ग्रन्थ कुरान में उल्लेखित दिव्य आयतों के प्रति समर्पित हों |
               वस्तुतः इस्लामी रिवायतों के विपरीत आचरण करने वाले ऐसे दृष्टान्त एक मुस्लिम के लिए अकल्पनीय हैं , क्योंकि पवित्र कुरान मे उल्लेखित     है , " ला-इकराह-फिद्दीन" अर्थात धर्म के संबंध में कोई जोर , जबरदस्ती नहीं है |
               इतना ही नहीं , समाज में सदभाव एवं समन्वय की भावना पल्लवित हो , इसलिए पवित्र कुरान के माध्यम से सर्वशक्तिमान अल्लाह आदेशित करते हैं कि , " लकुम-दीन कुम-वल-य-दीन " अर्थात , तुम अपने दीन पर खुश रहो , हम अपने दीन पर खुश रहें | यही वजह थी कि जब इस्लामी सम्राज्य के द्धितीय खलीफा अमीरुल मोमीन हजरत उमर के कार्यकाल में एतिहासिक नगर यरुश्लम पर वर्चस्व स्थापित कर लिया गया था | अनन्तर हजरत उमर यरुश्लम स्थित बैतुल मुकदिस की जियारत करने आये तो उक्त अवधि में वहां अवासित इसाइयों के साथ संधि वार्ता प्रस्तावित थी | जब एक गिरजाघर में संधि की शर्ते तय की जा रही थी तो नमाज़ का वक्त हो गया था , तब गिरजाघर के पादरी ने हजरत उमर से आग्रह किया कि वह नमाज़ यहीं पढ़ लें | इतिहास साक्षी है कि प्रत्युतर में हजरत उमर ने जो शब्द कहे थे , वह आज भी अनुकरणीय है , कथित शब्द हैं , “ मैं नमाज़ तो पढ़ लुँगा , किन्तु कालान्तर में मुस्लिम इस गिरजाघर पर दावा कर सकते हैं कि यहाँ अमीरुल मोमीन हजरत उमर ने नमाज़ पढ़ी थी | ”
               कहना न होगा कि हजरत उमर ने बैतुल मुकदिस में जा कर ही नमाज़ पढ़ी और अन्य धर्मावलम्बियों को आश्वस्त किया कि उनका जीवन , सम्पति और इबादतगाह जिनका वह आदर करते हैं , हर प्रकार से सुरक्षित रहेंगी और स्थानीय प्रशासन का दायित्व होगा कि उनकी रक्षा करे | मूलतः हजरत उमर अपनी ओर से कुछ नहीं कर रहे थे , अपितु पवित्र कुरान में उल्लेखित इस दिव्य आयत की ही अक्षरशः अनुपालना कर रहे थे , “ सर्वशक्तिमान अल्लाह प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा के घर की ओर आमंत्रित करते हैं | ”
               निःसंदेह , घर एक खुबसूरत प्रत्यय है | पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि आज वहां ऐसे मुनाफिक प्रभावी हो रहें हैं जो इस खुबसूरत ‘ घर ’ को ध्वस्त कर रहें हैं | जो भी हो , ऐसे अराजक तत्व मुस्लिम तो नहीं हो सकते , क्योंकि हजरत मुहम्मद साहब ने एक हदीस में फ़रमाया है कि अल्लाह की कसम , वह व्यक्ति मुस्लिम नहीं हो सकता , जिसकी हरकतों से उसका पड़ौसी सुख एवं शांति से न रह  सके |
               यहां इस तथ्य को पुनः रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि इस्लाम का शाब्दिक अर्थ सुख एवं शांति ही है | इसके अतिरिक्त पवित्र कुरान मे उल्लेखित जितनी भी दिव्य आयते हैं , जो हजरत मुहम्मद साहब पर अवतरित हुई हैं , उनमे ‘ ऐ लोगो ’ कह कर संबोधित किया गया है , कहीं भी ‘ ऐ मुसलमानो ’ कह कर संबोधित नहीं किया गया है , तभी तो सर्वशक्तिमान अल्लाह को रब्बुल आलमीन    ( समस्त संसार का पालक ) कहा गया है |
         पवित्र रमजानुल मुकद्दस अंतिम चरण में है | रब्बुल आलमीन से यही दुआ हैं कि हमें वह सुरक्षा के घर की ओर आमंत्रित करे , जो अराजक तत्व इस घर को धवस्त कर रहें हैं , उनकी मज्जमत करने की तौफिक ( क्षमता ) अता फरमायें , आमीन !
                              मोहम्मद इकबाल
                        ( लेखक – राज्य सेवा के पूर्व अधिकारी हैं )
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