Friday 5 October 2012

आज के भागीरथ AN ARTICLE ON CONTEMPORARY POLITICAL SITUATIONS IN INDIA


आज के भागीरथ
" गंगा को तो आना ही था , भागीरथ को यश मिल गया "

                                                                                                                                     
                           वो सतयुग था , महान तपस्वी भागीरथ के मन में कोई लालसा थी , यह कहना कठिन है | लकिन आज कलयुग का दौर है , अगर आप भागीरथ न भी हो तो भी अपने आप को भागीरथ घोषित करना संभव है | सरकार विरोधी लहर चल रही है , ऐसे में हर कोई इसका श्रेय लेने को आतुर है , यहाँ तक की कल तक इसी सरकार के कुछ सहयोगी दल भी आज इसी दौड़ में शामिल हो गए है |अगर कांग्रेस की वापसी नहीं होती है तो इसके पीछे असल वजह , उसकी स्वयं की नीतियाँ , अन्ना हजारे का आन्दोलन और कैग की २ जी तथा कोयला आवंटन पर रिपोर्ट होगी , जिनमे सरकार द्वारा की गयी गहरी वितीय अनियमितायें उजागर होती हैं | अब बात करे उनकी जो अपने आप को भागीरथ घोषित करने में लगे हैं | सर्वप्रथम बात करना चाहूँगा अरविन्द केजरीवाल  की , जिन्हें अभी स्वयं का कद भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में हाथी सा विशाल दिख रहा है | वेसे भी उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन , जो कि उनके दिखाने के दांत थे , से आगे बढ़कर अपना मुहँ खोल कर राजनीतिक महत्वकांक्षाओं रूपी खाने के दांत दिखाने शुरू कर दिए हैं |दिल्ली में बिजली की बढ़ी कीमतों के विरोध में वह जनता को बिजली चोरी के लिए के लिए उकसा रहे है | वह भ्रष्टाचार का विरोध अराजकता से करना चाहते है | चूहे को भगाने के लिए बिल्ली , बिल्ली को भगाने के लिए कुता और कुते को भगाने के लिए शेर , शायद भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह उनकी नयी व्यूहरचना है | देश के एक आम आदमी की हैसियत से मैं उनसे यह पूछना चाहूँगा कि वह आखिरकार चाहते क्या है ? वह जन लोकपाल लाना चाहते है या अन्ना आन्दोलन के गरम तवे पर अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की रोटियाँ सेकने के फेर में है ?
                         ऐसे ही एक भागीरथ है बाबा रामदेव | जिन्होंने पहले दिल्ली में जंतर मंतर पर बहुत ही जोश के साथ कालेधन की वापसी के संबंध में हुंकार भरी लेकिन एक फ़िल्मी ड्रामे की तरह रातों रात वह स्त्री वेश में भागते नज़र आये | अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए , लगभग एक साल बाद अन्ना के विफल अनशन प्रयास के ठीक पश्चात् उसी जगह सरकार के विरोध में कालेधन की वापसी हेतु एक दिखावे के आन्दोलन का प्रदर्शन किया , जो आंशिक रूप से सफल भी रहा और बाबा जी ने इस प्रकार भ्रष्टाचार की लड़ाई में अपनी उपस्तिथि को मजबूती प्रदान की | लकिन यहाँ उनके भगवा प्रेम ओर भाजपा के कथित समर्थन से एक यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि जब दाग भाजपा और कांग्रेस दोनों के दामन पर हैं तो हम एक को हटा कर दूसरे को सत्ता की कुर्सी सौंप कर ऐसा कौन सा बड़ा परिवर्तन ले आएंगे ?
                         यहाँ मैं दो भद्र महिलाओं का भी जिक्र करना चाहूँगा जिन्हें महिला सशक्तीकरण का पूरक मान सकते है | एक तो किरण बेदी हैं , जिनकी साफ सुथरी छवि और अब तक कि उपलब्धियों हेतु मैं उनका तहे दिल से सम्मान करता हूँ , लेकिन उनका सिर्फ कांग्रेस का विरोध करना और भ्रष्टाचार के विरोध में अरविन्द केजरीवाल को भाजपा का विरोध करने से रोकना और आजकल दिल्ली की मुख्यमंत्री के  पद के प्रति उनके मोह की जो बातें अखबारों में आ रही हैं , मन में अनेक सवाल उत्पन्न करती हैं | दूसरी महिला है ममता बैनर्जी , जिन्होंने बंगाल में लेफ्ट की सत्ता उखाड़ फेंकी थी , उनका इस वक़्त सरकार से समर्थन वापसी एक सार्थक कदम न होकर ऐसा प्रतीत हो रहा है , जैसे डूबते जहाज़ से सबसे पहले चूहों का भागना | उन्हें कांग्रेस की नीतिया अभी जन विरोधी लगी या सरकार विरोधी जो एक वातावरण तैयार किया जा रहा है , उसमे वो भी बहती गंगा में हाथ धोने के फेर में हैं ? वेसे मैं उनसे सीधे कोई सवाल नहीं करूँगा , क्योंकि मुझे डर हैं कि कंही ममता दीदी मुझे माओवादी करार न दे दें |
                         इन्ही सब के बीच एक अन्ना जी तटस्थ लगते हैं , लकिन उनके भी कुछ कृत्य जेसे येदुरप्पा के वक़्त शायद किसी मज़बूरी वश मौन धारण करना या केवल एक पार्टी विशेष का विरोध करना तथा लोकतंत्र में तानाशाही तरीको से मांगें मनवाने की जिद्द पकड़ना आदि , उनकी छवि को  धुंधला करते हैं | अब उन्होंने अनशन और राजनीति से अलग केवल आन्दोलन का रास्ता पकड़ा है , जो अधिक सार्थक लगता है |आन्दोलन तो लोक नायक जे. पी. के द्वारा संचालित  एक जन आन्दोलन भी था , जिसने इंदिरा जी की सत्ता उखाड़ फेंकी थी , लेकिन उसके लाये परिवर्तन नेताओं की कमज़ोर इच्छाशक्ति के चलते सतही साबित हुए और उसके बाद वही ढ़ाक के तीन पात |आशा करता हूँ की अन्ना जी अब न मौन धारण करेंगे न अपने आन्दोलन को राजनीतिक मह्त्वकांक्षाओं का मंच बनने देंगे , न इसे भगवा या कोई अन्य रंग देंगे  बल्कि इसे भ्रष्टाचार के विरोध में एक क्रन्तिकारी आन्दोलन का स्वरुप देंगे जो एक पार्टी विशेष के विरुद्ध न होकर हर उस व्यक्ति के विरुद्ध होगा जो भ्रष्टाचारी हैं और जिसमें देश का  प्रत्येक वर्ग जात पात से ऊपर उठकर एक समान सहयोग देगा और भ्रष्टाचार से मुक्त , जात पात से मुक्त , एक नयी पीढ़ी का उदय होगा |
                         लकिन अभी भी संशय है कि वह शक्ति क्या है जो वास्तव में परिवर्तन ला सकती है ? वह कौन सी ताकत है जिसने गाँधी जी के आन्दोलन को सफल बनाया था या वर्तमान की बात करे तो वो कौन सी ताकत है जिसने हाल ही में कुछ देशो के बड़े बड़े तानाशाहों के सिहांसन हिला दिए ? वह ताकत है जनता और उसकी एकता | जब आने वाली सरकारों का फैसला हमारे हाथो में है तो हम हमारी किस्मत का फैसला उनके हाथो में क्यों सौंपे ? जब हम वोट देने के हथियार से सत्ता परिवर्तन कर सकते है तो उन्हें जनता के हित में फैसले लेने को मजबूर भी कर सकते हैं | बस जरुरत है कि हम धर्म ,  समाज , वर्ग और तुच्छ मानसिकता से उपर उठें और सयंम और समझदारी से वोट दे न कि किसी बहकावे या लालच में आकर | याद रखियेगा पांच साल में एक बार ही सही हमारी किस्मत का बटन हमारे हाथों में होता है |
                   जाते -जाते सरकार से कुछ कहना चाहूँगा कि व्यंग चित्र ( कार्टून ) तो बस चित्र होते है जो बच्चों के चहरे पर हंसी लाते है और बड़ो के मन में सवाल , लेकिन इन्हें राजद्रोह या राष्ट्रद्रोह कि श्रेणी में रखना प्रासंगिक नहीं होगा वह भी दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतंत्र में |


             
                                                                                           डा. इमरान खान
                                                                                 संपर्क सूत्र - 9929786743
                                                                                 imran.babar85@gmail.com

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