Monday 22 October 2012

AN ARTICLE ON THE OCCASION OF NAVRATRA ABOUT KARNI MATA JI

                                                        
        सुरक्षा  का अहसास माँ की दुआओं का प्रतिफल
                     नवरात्रा के उपलक्ष्य में


किसी भी राज्य के स्थायित्व के लिए सुरक्षा की अनुभूति सर्वोपरि है | यह कहने में अतिरंजना नहीं होगी कि सुरक्षा का अहसास माँ की दुआओं का प्रतिफल है | यही वजह थी कि जब राव बीका 1465 ई. में राज्य स्थापित करने के लिए मंडोवर से जांगल प्रदेश की ओर अग्रसर हुए तो प्रथमत: माँ श्री करणी का आर्शीवाद लेने देशनोक पहुंचे थे | यह माँ श्री करणी द्वारा प्रदत आर्शीवचन का ही प्रतिदान था कि कालान्तर में राव बीका चांडासर आदि स्थानों पर अधिपत्य स्थापित करते हुए कोडमदेसर पहुंचे तो यहीं 1472 ई. में स्वयं को राजा के रूप में  प्रस्थापित किया था |
                 इतिहास साक्षी है कि 1485 ई. में राती घाटी में गणेश गढ़ की नींव रखी गयी थी , जो कालान्तर में द्वितीय राठौड़ सत्ता का प्रतीक बन गया था , इसका समस्त श्रेय राव बीका ने माँ श्री करणी को प्रदान किया था | माँ श्री करनी , जो राठौड़ो की कुल देवी मानी जाती हैं , का जन्म जोधपुर राज्य में अवस्थित सुवाप नमक गांव में 1387  ई. में हुआ था | इनके पिता का नाम मेहा था , जो चारण जाति के थे एवं माँ का नाम देवल था , जो एक धर्म परायण स्त्री के रूप में चारण समाज में प्रतिष्ठित थी| यही कारण रहा कि माँ श्री करणी की गायों के प्रति बाल्यकाल से ही असीम श्रद्धा थी |
                   किशोर वय में माँ श्री करणी का विवाह साठीका , जो बीकानेर राज्य में अवस्थित था , के केलु जी बिठू के कुंवर देपा जी बिठू के साथ हुआ था | विवाह के उपरांत भी माँ श्री करणी गो- पालन एवं ईश भक्ति में विमग्न रहती थी , फलत: ईश्वरीय अनुकम्पा से , जो दैवीय शक्तियां उनके अंतस्थ में समाहित हो गयी थी , उनके द्वारा अपने भक्तो की विपदाओं का समाधान निर्लिप्त भाव से होता था |
                 नि:संदेह , माँ श्री करणी के विराट व्यक्तित्व में भविष्य के संबंध में पूर्व अनुमान प्रकट करने की अपूर्व शक्ति थी , फलत: दूरस्थ स्थानों से व्यक्ति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए आते रहते थे | यहाँ इस तथ्य को रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि जब देशनोक में राव बीका माँ श्री करणी के समक्ष नत मस्तक हो कर आर्शीवचन ग्रहण कर रहे थे , तब उन्होंने कतिपय शब्द भविष्य के सन्दर्भ में कहें थे , जिन्हें अक्षरश: उदरित करना अपेक्षित होगा , " तुम्हारा यश जोधा से सवायां ( द्विगुणित ) होगा | अनगिनत भूपति तुम्हारे चाकर ( सेवक ) होंगे | तुम्हारे वंशज पांच सदी तक इस भूभाग के छत्र पति रहेंगे | "
                 देव वाणी के सदृश उक्त भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई क्योंकि जब बीकानेर के अंतिम महाराजा  करणी सिंह का 6 सितम्बर 1988 को देहावसान हुआ तो बीकानेर नगर को स्थापित हुए पांच सौ वर्ष हो गये थे | कहना न होगा कि बीकानेर नगर की स्थापना सितम्बर 1488 में हुई थी , अत: ठीक पांच सौ वर्ष के पश्चात्  , अर्थात 6 सितम्बर 1988 को , एक स्वर्णिम काल खंड का अवसान हो गया था |
                 कालान्तर में श्रद्धालुओं की असीम भक्ति के प्रतिफल के रूप में बीकानेर से 30 कि. मी. दूर अवस्थित देशनोक में माँ श्री करणी का भव्य मंदिर , जो धवल संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है , जिसमें सूक्ष्म नक्काशी युक्त विशाल चांदी के द्वार हैं , सम्पूर्ण वैभव के साथ विस्तारित होता गया |
               


                         मंदिर के मुख्य मंडप में श्री करणी माँ एवं उनकी बहनों की मूर्तियां हैं | मंदिर की सबसे विशिष्ट बात यह है कि हजारों पवित्र चूहें स्वछंद रूप से विचरण करते रहते हैं| इन चूहों को ' काबा ' कहा जाता हैं | कथित चूहों को पूज्य मान कर मंदिर के पूजारी व भक्त भोज्य सामग्री एवं प्रसाद खिलाते हैं , क्योंकि चारण समाज के व्यक्ति इन चूहों को अपना पूर्वज मानते हैं |
                

 

                 मंदिर में आने वाले चढ़ावे को दो भागो में बांटा जाता हैं | प्रथम चढ़ावा जो द्वार भेंट कहलाता है , वह मंदिर के पुजारी तथा अन्य सेवादारों को दिया जाता है |द्वितीय चढ़ावा कलश भेंट कहलाता है जो मंदिर के रख रखाव में काम आता है |
                 मार्कण्डेय पुराणों के अनुसार दुर्गा सप्तशती का नवरात्र में पाठ करने का प्रचलन पूर्व मध्यकालीन अनुदानों में उल्लेखित है और उक्त परम्परा हमारे समाज में आज भी विधमान है | यही वजह है कि नवरात्र में माँ श्री करणी का मेला वर्ष में दो बार आयोज्य होता है | प्रथमत: चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल की दशमी तक तथा द्वितीयत: अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से दशमी तक |
                 आज आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की नवम तिथि है | कहना न होगा की देशनोक में माँ श्री करणी के मंदिर में स्थित मुख्य मंडप के चारों ओर अनगिनत श्रद्धालु परिक्रमा कर रहे हैं |उक्त परिक्रमा से प्रतिध्वनित हो रहे पवित्र नाद के आलोक में यही भावाक्ति है कि सुरक्षा का अहसास माँ की दुआओं का प्रतिफल है , आमीन !
                                                                               



                                                                  

                                                                   मो. इकबाल
                                                           संपर्क सूत्र -9929393661

No comments: