Thursday 25 October 2012

AN ARTICLE ON CONTEMPORARY POLITICS AND ROBERT VADERA


                     कुंवर फंस गए भंवर में !
                        एक प्रतिष्ठित जागीरदार अपने संस्मरण में लिखते हैं , स्वतंत्रता के पश्चात जागीरदारी व्यवस्था का उन्मूलन हो रहा था , संबंधित राज्य प्रशासन  , जागीरदारों द्वारा संघारित अधिशेष भूमि को अधिग्रहित कर रहा था | अत: उक्त परिप्रेक्ष्य में उनके परिवार द्वारा अधिशेष भूमि को सर्वोदय नेता विनोबा भावे से उत्प्रेरित हो कर भू दान आन्दोलन को समर्पित कर दी गयी थी |उक्त प्रष्ठांकन के पश्चात वह आगे लिखते हैं , कथित अधिशेष भूमि को भू दान बोर्ड के माध्यम से पात्र भूमिहीनों को वितरित करने के लिए विविध स्थानों पर कार्यक्रम आयोज्य किये जाते थे |
                         ऐसे ही एक कार्यक्रम में वह स्वयं भी उपस्थित थे , जिसमे एक कृशकाय भूमिहीन कृषक एक बंजर भूमि के लिए आयोजकों से बारम्बार आग्रह कर रहा था , जबकि उस बंजर भूमि के लिए अन्य भूमिहीन कृषक अनिच्छा व्यक्त कर रहे थे |स्वाभाविक था , उस कृशकाय भूमिहीन कृषक के द्वारा बारम्बार उस बंजर भूमि के लिए आग्रह किये जाने पर उपस्थित जन समुदाय में उसके प्रति एक स्वाभाविक जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी थी | फलत: उस से प्रश्न किया गया कि वह इस बंजर भूमि के लिए इतना व्यथित क्यों हो रहा है ?
                       प्रत्युत्तर में उस अकिंचन कृषक ने जो सत्यता प्रकट की थी , वस्तुत: वह हमारी सामाजिक व्यवस्था  में अंर्तनिहित दर्शन को अभिव्यक्त करती है | वह जागीरदार उस साधारण कृषक के मुंह से असाधारण कथन को सुन कर , उसके प्रति श्रद्धा से नतमस्तक होते हुए लिखते हैं , उस कृशकाय कृषक का प्रत्युतर था , संबंधित भूमि बंजर है अथवा नहीं है , यह प्रश्न गौण है | वस्तुत: सत्यता यह है कि इस बंजर भूमि का स्वामित्व मिल जाने के पश्चात समाज में मेरी भी प्रतिष्ठा हो जायेगी , क्योंकि मैं भूमिहीन के अभिशाप से मुक्त हो कर एक सम्मानित भू-पत हो जावूँगा |
                       नि:संदेह  , उस भूमिहीन कृषक को अपेक्षित भूमि का टुकड़ा मिल जाने के कारण उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा में अवश्य वृद्धि हुई होगी किन्तु यहाँ यह यक्ष प्रश्न उठना स्वाभाविक  है कि कांग्रेस के स्वयं भू प्रथम परिवार के कुंवर ( राजस्थान में दामाद को कुंवर का संबोधन देने के परम्परा रही है ) राबर्ट वाड्रा कौन सी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए आतुर हो रहे है , जिसके फलस्वरूप उन्होंने थार के मरुस्थल में अवस्थित बीकानेर के सन्निकट हजारों एकड़ बंजर भूमि का अधिग्रहण किया है ?
                       सत्ता के गलियारों में प्यादे भी यदा कदा हरावल में चलने लगते हैं | लगता है , कथित प्यादों ने अपने आकाओं को उस विलक्षण भू-भाग की सांस्कृतिक रिवायतों के बारे में अवगत नहीं कराया कि यहां तो ऐसे कुंवर हुए हैं , जिन्होंने 1544 ई. में गई हुई भूमि को अपने अथक प्रयास से अधिग्रहित करके पुनः अपने ज्येष्ठ भ्राता राव कल्याण मल को राज्य हित में समर्पित कर दी थी , फलतः कृतज्ञ बीकाणा  आज भी कुंवर भीम राज को ' गई भूम का बाहड़ू ' के सम्मानित दिरुद से सुशोभित करता हैं |मूलत: हमारी सामाजिक एवं पारम्परिक संरचना इसी तथ्य को प्रकट करती हैं कि हमारे अंर्तमन में आज भी सामंती मूल्य अंर्तनिहित है , जिसके वशीभूत हो कर हम येन - केन प्रकारेण कुछ भूमिं के टुकड़ो को हस्त गत करके स्वयं को भू-पत कहलाने में स्वर्गीक आनंद की अनुभूति करते हैं |
                      कहना न होगा की देश में लोकतान्त्रिक राज व्यवस्था अस्तित्व में है , फिर भी तथाकथित ' दरबार ' की अपनी एक विशिष्ट ठसक होती है , अत: प्यादे भले ही भाग्यवश हरावल में आ जायें , किन्तु कतिपय राजनैतिक विवशताएं होती है , जो आकाओं के समक्ष उनको निरीह प्राणी बनने के लिए विवश कर देती हैं |अत: उनकी विवशता को दृष्टिगत रखते हुए तथाकथित भू पतियों से ' मैंगो पीपुल ' का आग्रह है की नि:संदेह , भू-पत बनियेगा , आपका जन्म सिद्ध अधिकार है , किन्तु आपकी आखेट क्रीड़ा के लिए इस महान देश को ' बनाना रिपब्लिक ' की तोहमत से नवाजा नहीं जा सकता |
                      इसे देश का दुर्भाग्य ही कहियेगा कि कथित भू-पत लैटिन अमेरिका की भू-राजनैतिक एवं आर्थिक इतिहास से तो भिज्ञ हैं , किन्तु जिस पुरा वैभव से सुसज्जित बीकाणे के भू-भाग में कुछ भूमि के टुकड़े लेकर विजयी मुद्रा में ' मेंगो पीपुल ' , ' बनाना रिपब्लिक ' जैसे अर्थहीन शब्दावली के माध्यम से इस महान देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को हेय दृष्टि से देख रहे है , वह काश , इस तथ्य से अवगत होते कि इसी बीकाणे में तो कुंवर उसे कहते हैं , जिसने 1953 ई. में 1.42 लाख बीघा भूमि भू-दान बोर्ड के मध्यम से भूमिहीन एवं कृशकाय ' मेंगो पीपुल ' को वितरित कर दी थी ताकि यह महान देश ' बनाना  रिपब्लिक ' की तोहमत से नवाज़ा न जा सके |
                        इतिहास त्रासदिक घटनाक्रम को पुनरावृत न करने का पाठ पढ़ाता रहता है ,    तदुपरांत भी भू-पत बनना ही है तो अवश्य बनियेगा किन्तु इसकी भारी कीमत भी अदा कीजियेगा | विश्वास नहीं हो रहा है तो अतीत के बदरंग पृष्ठ पलटने की थोड़ी सी जहमत उठानी होगी , तो  यही प्रतिध्वनित होगा कि बोफोर्स की प्रेतछाया से आज तलक कांग्रेस का प्रथम परिवार मुक्त नहीं हुआ है , हालाँकि कालजयी राजन विक्रमादित्य बारम्बार यह कहते हुए पेशेमां हो गये हैं कि एक सक्षम न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत बोफोर्स से संबंधित व्यक्ति विशेष को दोषमुक्त कर दिया गया है |
                       भाग्य की विडंबना है , हठी विक्रमादित्य के अपेक्षित प्रत्युतर के उपरांत भी वैताल पेड़ से उतर कर पुन: उसकी पीठ पर अधिष्ठित हो गया है |
                                                              मो. इकबाल
                                     ( लेखक - राज. राज्य सेवा के पूर्व अधिकारी हैं )
                                                संपर्क सूत्र - 9929393661

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