एक आवाज़ भ्रष्टाचार के विरोध में
एक जवाबदेह प्रजातंत्र की स्थापना , भारत के संविधान की वह विशेषता है ,
जो इसके निर्माताओं
की दूरदर्शिता को परिलक्षित करती है । आज उसी , जनता के प्रति जवाबदेह
लोकतंत्र में , जनता ठगी सी खड़ी है तथा संत्रस्त है अपने ही द्वारा चुने
गए जन प्रतिनिधियों के फैलाये भ्रष्टाचार से तथा इनकी गैरजवाबदारी से ।
महंगाई ने आम आदमी की जेब पर अंकुश लगा दिया है । जो इच्छाऐं अमीर के घर
में फलती फूलती है , वही गरीब के घर में दम तोड़ देती है । जहां लाखों गरीब
बेरोजगार युवक कुछ हज़ार की नौकरी के लिए चप्पलें घिसते रह जाते है ,
वही कुछ नेता 1 लाख 76 हज़ार करोड़ का घोटाला कर देते
है । शर्म की बात तो यह है कि भ्रष्टाचार इस तरीके से हमारे रोम रोम में
समां गया है कि भ्रष्टाचार को जैसे सामाजिक स्वीकृति मिल गयी हो । कुछ लोग
जन लोकपाल कानून बनाने हेतु आन्दोलन में लगे है , प्रयास प्रशंसनीय है ,
लकिन यह लोग भूल गए है कि जिन आदर्शों को हमने जड़ समेत उखाड़ फेंका है ,
उन्हें पुनः पल्लवित किये
बिना भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना नामुमकिन है । हंसी तो तब आती जब कुछ
लोग करोड़ो के निजी विमान से अवतरित हो कर जनता के सामने काले धन की वापसी
का उच्च स्वर में आलाप करते है।

शायद , हम आज भी अवतारवाद से ग्रसित है । हम हमारी ही
लड़ाई नहीं लड़ना चाहते , चाहते है की कोई हमारे लिए लड़े , जेल जाये और
आमरण अनशन करे और हमारा काम तो बस उसकी सभा में नारे लगाने से निकल जायेगा ।
कभी सोचा है , जिन नेताओ के मुर्दाबाद के नारे लगाते हो , उन्हें अपने
अमूल्य वोट देकर कोन चुनता है ? क्यों हम हमारे सविंधान के द्वारा प्रदत्त
इतनी बड़ी शक्ति का धर्म , मजहब या अन्य तुच्छ कारणों से दुरूपयोग करते है
और फिर इंतजार करते है कि कब कोई हमारे लिए आवाज़ उठाएगा ? समय आ गया है
अपने खोये हुए आदर्शो को पुनः स्थापित करने का तथा संविधान द्वारा प्रदत्त
वोट देने की शक्ति का समुचित प्रयोग कर सत्ता के ठेकेदारों को आईना दिखाने
का , वरना मांगे केवल नारे बनकर रह जायेंगी , जो सत्ता के गलियारों में
गूंजते गूंजते एक दिन लुप्त हो जायेंगी ।
उक्त परिप्रेक्ष्य में सर्वाधिक निराश तो मीडिया कर रहा
है , जो इस मुद्दे को हवा देकर टी.आर.पी. बढ़ाने में लगा है । मीडिया शायद
मुद्दे से भटक गया है । उन्हें चिंता अन्ना हजारे जी के अनशन की नहीं है
अपितु आन्दोलन के फलस्वरूप राजनितिक गलियारों में मची उठापटक से है , लकिन
मुख्य मुद्दा है - भ्रष्टाचार को ख़त्म करना , शायद इस से किसी को कोई
सरोकार नहीं । मेरा आग्रह है मीडिया से कि अपने तुच्छ स्वार्थो से किनारा
कर सही मुद्दो को समुचित तरीके से उठाये तथा किसी प्रभावशाली हाथ की
कठपुतली बनने से अच्छा है कि सच्चाई को पूरी ईमानदारी से जनता के सामने रखे
।
अंत में मेरा आग्रह है अन्ना हजारे जी से है कि देश को बहुत उम्मीदे है आप से । अपने आन्दोलन में तटस्थता बनाये रखे , कही यह एक विशेष राजनितिक दल विरोधी लड़ाई भर ना बनकर रह जाये। हमारी लड़ाई भ्रष्टाचार से है , जिसका ना कोई धर्म है , ना कोई मजहब है , ना रंग है और ना ही कोई दल है , वह तो सर्वत्र व्याप्त है , जिसे हमें समूल नष्ट करना है , इसी में कथित आन्दोलन की सार्थकता है ।
डा . इमरान खान
9929786743
अंत में मेरा आग्रह है अन्ना हजारे जी से है कि देश को बहुत उम्मीदे है आप से । अपने आन्दोलन में तटस्थता बनाये रखे , कही यह एक विशेष राजनितिक दल विरोधी लड़ाई भर ना बनकर रह जाये। हमारी लड़ाई भ्रष्टाचार से है , जिसका ना कोई धर्म है , ना कोई मजहब है , ना रंग है और ना ही कोई दल है , वह तो सर्वत्र व्याप्त है , जिसे हमें समूल नष्ट करना है , इसी में कथित आन्दोलन की सार्थकता है ।
डा . इमरान खान
9929786743
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