जैसा कि ज्ञातव्य है , संसद का वर्षा कालीन सत्र चल रहा है | कथित सत्र के सत्रांश में ही कतिपय माननीय सदस्यों
ने शून्य काल में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से इस सत्यता की ओर ध्यान आकृष्ट
किया है कि पड़ौसी देश पाकिस्तान में अल्पसंख्यको , विशेषकर हिन्दू समुदाय के प्रति
अमानवीय घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है |
अतः
उक्त अमानवीय घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में , जो एक असहाय व्यक्ति के तथाकथित धर्मान्तरण से एवं एक अल्प आयु बालिका से संबंधित
है , जिसका अपहरण करके उसका धर्मान्तरण के पश्चात बलपूर्वक अन्य
धर्मावलम्बी से निकाह करा दिया गया था , फलतः ऐसे निंदनीय एवं अमानवीय कृत्यों की निंदा की जाये |

उक्त
धर्मान्तरण एवं बलात विवाह की घटनाओं को प्रेस के समक्ष प्रदर्शित करने वाले स्वयंभू
आयोजक भले ही दर्प एवं अहंकार से आह्लदित हो रहे होंगे किन्तु सत्यता यह है कि वह
मुस्लिम नहीं अपितु मुनाफिक ( पथभ्रष्ट ) हैं , क्योंकि सच्चे अर्थों में मुस्लिम वह है , जो इस्लाम के प्रति समपर्ण का भाव रखता हो , पवित्र ग्रन्थ कुरान में उल्लेखित दिव्य आयतों के प्रति समर्पित हों |
वस्तुतः इस्लामी रिवायतों के विपरीत आचरण करने
वाले ऐसे दृष्टान्त एक मुस्लिम के लिए अकल्पनीय हैं , क्योंकि पवित्र कुरान मे उल्लेखित है , " ला-इकराह-फिद्दीन" अर्थात धर्म के संबंध में
कोई जोर , जबरदस्ती नहीं है |”
इतना ही नहीं , समाज में सदभाव एवं समन्वय की भावना पल्लवित हो , इसलिए पवित्र कुरान के माध्यम से सर्वशक्तिमान अल्लाह
आदेशित करते हैं कि , " लकुम-दीन कुम-वल-य-दीन " अर्थात , तुम अपने दीन पर खुश रहो , हम अपने दीन पर खुश रहें | यही वजह थी कि जब इस्लामी सम्राज्य के द्धितीय खलीफा अमीरुल मोमीन हजरत उमर के
कार्यकाल में एतिहासिक नगर यरुश्लम पर वर्चस्व स्थापित कर लिया गया था | अनन्तर हजरत उमर यरुश्लम स्थित बैतुल मुकदिस की
जियारत करने आये तो उक्त अवधि में वहां अवासित इसाइयों के साथ संधि वार्ता
प्रस्तावित थी | जब एक गिरजाघर में संधि की शर्ते तय की जा रही थी
तो नमाज़ का वक्त हो गया था , तब गिरजाघर के पादरी ने हजरत
उमर से आग्रह किया कि वह नमाज़ यहीं पढ़ लें | इतिहास साक्षी है कि प्रत्युतर में हजरत उमर ने जो शब्द कहे थे , वह आज भी अनुकरणीय है , कथित शब्द हैं , “ मैं नमाज़ तो पढ़ लुँगा , किन्तु कालान्तर में मुस्लिम
इस गिरजाघर पर दावा कर सकते हैं कि यहाँ अमीरुल मोमीन हजरत उमर ने नमाज़ पढ़ी थी | ”
कहना न होगा कि हजरत उमर ने बैतुल मुकदिस में जा कर ही नमाज़ पढ़ी और अन्य
धर्मावलम्बियों को आश्वस्त किया कि उनका जीवन , सम्पति और इबादतगाह जिनका वह आदर
करते हैं , हर प्रकार से सुरक्षित रहेंगी और स्थानीय प्रशासन का दायित्व होगा कि
उनकी रक्षा करे | मूलतः हजरत उमर अपनी ओर से कुछ नहीं कर रहे थे , अपितु पवित्र
कुरान में उल्लेखित इस दिव्य आयत की ही अक्षरशः अनुपालना कर रहे थे , “ सर्वशक्तिमान
अल्लाह प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा के घर की ओर आमंत्रित करते हैं | ”
निःसंदेह , घर एक खुबसूरत प्रत्यय है | पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि आज वहां
ऐसे मुनाफिक प्रभावी हो रहें हैं जो इस खुबसूरत ‘ घर ’ को ध्वस्त कर रहें हैं | जो
भी हो , ऐसे अराजक तत्व मुस्लिम तो नहीं हो सकते , क्योंकि हजरत मुहम्मद साहब ने
एक हदीस में फ़रमाया है कि अल्लाह की कसम , वह व्यक्ति मुस्लिम नहीं हो सकता ,
जिसकी हरकतों से उसका पड़ौसी सुख एवं शांति से न रह सके |
यहां इस तथ्य को पुनः रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि इस्लाम का शाब्दिक
अर्थ सुख एवं शांति ही है | इसके अतिरिक्त पवित्र कुरान मे उल्लेखित जितनी भी
दिव्य आयते हैं , जो हजरत मुहम्मद साहब पर अवतरित हुई हैं , उनमे ‘ ऐ लोगो ’ कह कर
संबोधित किया गया है , कहीं भी ‘ ऐ मुसलमानो ’ कह कर संबोधित नहीं किया गया है ,
तभी तो सर्वशक्तिमान अल्लाह को रब्बुल आलमीन ( समस्त संसार का पालक ) कहा गया है |
पवित्र रमजानुल मुकद्दस अंतिम चरण में है | रब्बुल आलमीन से यही दुआ हैं कि
हमें वह सुरक्षा के घर की ओर आमंत्रित करे , जो अराजक तत्व इस घर को धवस्त कर रहें
हैं , उनकी मज्जमत करने की तौफिक ( क्षमता ) अता फरमायें , आमीन !
मोहम्मद इकबाल
( लेखक – राज्य सेवा के पूर्व अधिकारी हैं )
संपर्क सूत्र - 9929393661
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